गुर्दे की देखभाल
किडनी पेâल्योर के मामलों में आयुष ग्राम (ट्रस्ट) द्वारा संचालित ‘‘आयुष ग्राम चिकित्सालयम’’ से अच्छा विकल्प अन्यत्र नहीं है।
आयुर्वेद चिकित्सा विधा द्वारा किडनी रोगों को दूर करने में अच्छी सफलता पायी है। जिससे ‘आयुष ग्राम’ चित्रकूट अन्तर्राष्ट्रीय पहचान मिली है।
नहीं बदलवानी होगी किडनी, बचेंगे डायलेसिस से!!
‘‘किडनी पेâल्योर रोगियों में स्नेहन, स्वेदन, की तकनीक (युक्ति) से बेहतर परिणाम मिल रहे हैं… यूरिया, क्रिटनीन घट रहे हैं, डायलेसिस भी छूट रही है और किडनी बदलवाले से बच रहे हैं…’’
३१ वर्षीय श्रीमती आरती द्विवेदी, दिबियापुर जिला- औरेया की किडनी पेâल हो गयी। यूरिया १८८.४ और क्रिटनीन १८.३ हो गया। कानपुर में डायलेसिस शुरू हो गया। डायलेसिस करते-करते श्रीमती आरती द्विवेदी बहुत कमजोर हो गयीं। उनके मरने-जीने की आ पड़ी।
पति शिवकान्त द्विवेदी श्रीमती आरती को लेकर आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रवूâट के ‘आयुष ग्राम चिकित्सालयम्’ आये।
केवल ४ सप्ताह का समय लगा ‘आयुष ग्राम चित्रवूâट’ में रखकर इलाज किया गया, वह डायलेसिस और किडनी ट्रान्सप्लान्ट से बच गयी।
१८ वर्षीय अजीज अहमद को बिंवार (हमीरपुर) उ.प्र. से लेकर उनके पिता १५ अक्टूबर २०१८ को – आयुष ग्राम ट्रस्ट के चिकित्सालय चित्रवूâट आये। उसकी भी कानपुर में डायलेसिस चल रही थी। डॉक्टर कह रहे थे कि किडनी बदलनी पड़ेगी। पर किडनी बदलना कोई कपड़े बदलने जैसा सरल काम तो है नहीं। फिर बदली हुई किडनी कुछ साल में खराब हो जाती है और रोगी फिर डायलेसिस में आ जाता है।
यहाँ आने पर खून जाँच हुयी तो यूरिया १०८.९, क्रिटनीन ११.९ आया।
अजीज के पिता इमाम हुसेन को भारतीय चिकित्सा विज्ञान की तकनीक और प्रभाव की जानकारी दी गयी और यह बताया गया कि यह ऐसी तकनीक है कि रोगी में स्टेमिना (बल) भी आता है, खून में बसा यूरिया, क्रिटनीन बाहर होता है, किडनीr फिर से काम करने लगती है। यह बहुत ही सफल तकनीक है और आरामदायक चिकित्सा भी। किसी भी प्रकार के सुई, काँटे छूरी या ऑपरेशन का प्रयोग नहीं होता केवल दवाओं का प्रयोग होता है। अजीज को ‘आयुष ग्राम चिकित्सालय चित्रवूâट’ में रखा गया और भारतीय चिकित्सा विज्ञान की तकनीकि स्नेहन,स्वेदन, विरेचन, बस्तियाँ आदि युक्तिपूर्वक दी गयीं, भोजन में पेया, विलेपी दी जाती रही।
४ सप्ताह तक अजीज अहमद की ‘आयुष ग्राम’ में चिकित्सा की गयी और क्रिटनीन, यूरिया नार्मल हो गया। ये तो सन्दर्भ मात्र है। प्रत्येक रोगी में अलग-अलग परिणाम आते हैं पर जितने अच्छे परिणाम आते हैं वे अभिलिखित करने योग्य हैं। सफल केसों का प्रकाशन आई.एस.एस.एस.एन. रजिस्टर्ड जनल्र्स में होता है।
‘‘भारतीय चिकित्सा विज्ञान’’ की यह तकनीकि —
यह तकनीकि भारतीय चिकित्सा विज्ञान की है जिस पर हमने २००६ से कार्य है।
दरअसल ‘किडनी पेâल्योर’ का मूल कारण शरीर का कुपोषण, अतिमानसिक व शारीरिक श्रम, दूषित, गलत खान-पान और गलत चिकित्सा जिससे शरीर की वायु और अग्नि (फायर- इम्यून सिस्टम) की भूमिका होती है। फिर चयापचय प्रणाली में बिगाड़ की शुरू हो जाता है। जिससे मधुमेह, ब्लडप्रेशर आदि हो जाते हैं और किडनी पेâल हो जाती है।
वैज्ञानिक रिसर्चों में भी यही बात सामने आयी है कि किडनी रोगी को अंग्रेजी अस्पताल/डॉक्टर खान-पान की बन्दिशें लगा देते हैं। दूध और घी जिसे वैज्ञानिकों ने भी उत्तम पोषण, जीवनीय और बलप्रद माना है उसे तो छूने से मना कर देते हैं, नमक और मसालों पर पूरी पाबन्दी लगा दी जाती है, केवल उबली सब्जियाँ, सूखी रोटियाँ दिया जाता है। जिससे कुपोषण और बढ़ता है परिणामत: मर्ज और बढ़ने लगता है।
जबकि नेशनल किडनी फाउन्डेशन एण्ड दि एकेडमी ऑफ न्यूट्रीशियन डाइटिक्स ने भी अपने रिसर्च में कहा है कि किडनी के मरीजों में ‘न्यूट्रीशियन थैरेपी’ (पोषण चिकित्सा) अवश्य दी जानी चाहिये। पोषण चिकित्सा के प्रभाव से गुर्दे की बीमारी का प्रभाव घट जाता है चाहे वह किसी भी स्टेज की बीमारी हो।
‘भारतीय चिकित्सा विज्ञान’ में भी पोषण पर ध्यान देने की बात कही गयी है। स्नेहन तकनीकि की प्रधान मात्रा को ‘बल्या’ पुनर्नवकरी ((Rाुाहीaूग्न) बताया है।
‘भारतीय चिकित्सा विज्ञान’ में स्नेहन, स्वेदन के साथ-साथ शोधन (ँग्द झ्ल्rग्fग्ी) और शमन चिकित्सा से शरीर से यूरिया, क्रिटनीन जैसे जहरीले पदार्थ बाहर होते हैं तथा शरीर में इन जहरीले तत्वों का निर्माण भी कम होने लगता है। शरीर की दुर्बलता दूर होती है तथा किडनी जैसा अवयव निरोग होता है।
इस तकनीकि प्रक्रिया के फायदे-
आयुष ग्राम चिकित्सालय चित्रवूâट में इस तकनीकि की दो सिटिंग दी जाती हैं। पहली सिटिंग २ या ३ सप्ताह की होती है। इस दौरान ‘आयुष ग्राम चिकित्सालयम्’ में रोगी को रखा जाता है। यहाँ के डॉक्टर/नर्स सतत निरीक्षण कर अपनी निगरानी में औषधियाँ, पोषक (स्नेहन, स्वेदन, पंचकर्म तथा खान-पान भी) देते हैं। हर सप्ताह खून की जाँच की जाती है। अधिकांश किडनी रोगियों में पहले सप्ताह ही क्रिटनीन यूरिया घटने लगता है।
१५ दिन की दूसरी सिटिंग फिर एक या डेढ माह बाद देते हैं। लाभ होने के बाद का किसी भी रोगी का जीवन मरीज द्वारा किये जा रहे परहेज और स्वास्थ्य की गम्भीरता पर निर्भर होता है।
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